श्री राम: शरणम् मम्

A Holy & Devine Place

Ramayanam Ashram

यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं सुकविना श्रीशम्भुना दुर्गमं
श्रीमद्रामपदाब्जभक्तिमनिशं प्राप्तयै तु रामायणम्‌।
मत्वा तद्रघुनाथनामनिरतं स्वान्तस्तमः शान्तये।
भाषाबद्धमिदं चकार तुलसीदासस्तथा मानसम्‌॥

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Param Pujya Sadgurudev Shri Ram Kinkar Ji Maharaj

Various Facet of Guru Satta

‘‘तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्‌ समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्‌ ’’

-मुण्डकोपनिषद्

परमात्मा को जानने के लिए समर्पित होकर श्रोत्रीय, ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की ही शरण जाना चाहिए। इस श्रुत्यर्थ का अनुगमन करता हुआ साधक, श्रोत्रीय एवं ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की खोज करता है । उन्हें प्राप्त करके अपने जीवन के अभीष्ठ तथ्य परमात्मा को प्राप्त करता है ।

SUCCESSOR OF PARAM PUJYA MAHARAJ SHRI

Didi Maa Mandakini Shri Ram Kinkar

  • As A Guru

  • As An Orator

  • As A Writer

  • As A Poet

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥

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INSPIRATION

Our Guru Parampara

श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥

Guru Parampara refers to the uninterrupted succession of gurus. Derived from Sanskrit, guru means "teacher" and parampara means “uninterrupted series,” "continuation" or "succession." The passing down of knowledge, which is the concept of parampara, is central to yogic philosophy.

The greatness of a lineage is highly dependant upon the guru parampara where, apart from the immediate guru, three preceding gurus are also revered. The following is how this succession of these four gurus are referred to:<br> Guru - The immediate Guru<br> Parama Guru - Guru's Guru<br> Parapara Guru - Guru of Parama Guru<br> Parameshti Guru - Guru of Parapara Guru<br>

Guru parampara as a representation of lineage, is a unique tradition in the world in which a guru passes on his/her acquired knowledge to a chosen shishya(s), or disciple.

Successor of Param Pujya Maharaj Shri

Didi Maa Mandakini Shri Ram Kinkar

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परम पूज्यपाद महाराज श्री रामकिंकर जी के साकेत वास के पश्चात्‌
उनके भक्तों के पत्रों द्वारा प्राप्त संक्षिप्त

'भाव-सुमन”

महाराज श्री के परमधाम पधारने के समाचार से ऐसा लगा कि श्री रामकथा के साथ आध्यात्मिक ज्ञान का शीतल चँदोवा हमारे ऊपर से उठ गया। महाराज श्री युग पुरुष थे, उनकी उपस्थिति मुझे ज्ञान, भक्ति और कर्म की जो त्रिवेणी कल-कल करती हुई सुनाई पड़ती थी, उससे मेरा अंतःकरण सुख, शांति एवं संतोष से सराबोर हो जाता था।

पूज्य स्व. श्री महाराज जी के व्यक्तित्व में तुलसी की भक्ति, वसिष्ठ जी का ज्ञान, वेदव्यास जी की रचना शैली, सरस्वती की वाणी का तेज था। वे राम की मर्यादा, भरत जी के प्रेम, हनुमान जी की निष्ठा व विभीषण के समर्पण से सुशोभित युग पुरुष थे। उनका प्रभु सत्ता में लीन होना भारतीय आध्यात्मिक मंच से जैसे नायक का विलीन हो जाना है।

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