श्री राम: शरणम् मम्

Ram Navami - रामायणम् आश्रम - श्री धाम अयोध्या

Shree Ram Janmotasav
March 30, 2023
Ashram, Festivals, Religion

।। श्री रामः शरणं मम।।
नौमी तिथि मधु मास पुनीता।

-रामकिंकर

यह मंगलमय पुनीत पर्व है। यह पुनीत पर्व, यह तिथि हम न जाने कितने वर्षों से, न जाने कितने युगों से मनाते चले आ रहे हैं। हमारे मन में यह उल्लास जगाती है और प्रभु कृपा का स्मरण कराती है। गोस्वामीजी जब भगवान् श्रीराघवेन्द्र के अवतार का वर्णन करते हैं, तो उसके पीछे जो उद्देश्य है उसे हमें समझना होगा और उसे समझ कर यदि हम जीवन में चरितार्थ कर सकें, तो यही इस पर्व के मनाने की सच्ची सार्थकता कही जा सकती है। भगवान् श्रीराघवेन्द्र का जन्म जैसा कि मानस के उत्तरकाण्ड में बताया गया है- ‘प्रति ब्रह्मांड राम अवतारा। देखउँ बालबिनोद अपारा।।’ प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भगवान् श्रीराघवेनद्र का अवतार होता है और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भगवान् श्रीराघवेनद्र की लीला संपन्न होती है।

जब गोस्वामीजी यह कहते हैं कि प्रत्येक कल्प में और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भगवान् राम का अवतार होता है, तब इसका तात्पर्य केवल इतना ही नहीं है कि भगवान् श्रीराघवेन्द्र का अवतार त्रेतायुग में हो चुका और आज नहीं होगा। तब तो हमारे सामने प्रश्न आयेगा कि फिर भगवान् श्रीराघवेन्द्र की यह जो कथा है, जो मंगलमयी भक्ति है, इनका लाभ क्या है? वस्तुतः आज के युग में भी हम और आप भगवान् के अवतार को अपने जीवन में चरितार्थ कर सकते हैं। और रामनवमी का यह पुनीत पर्व प्रतिवर्ष आकर हमारे और आपके लिये एक प्रेरणा प्रस्तुत करता है कि हम कौन-सी परिस्थितियों का सृजन करें, किस प्रकार हम चेष्टा करें कि जिससे भगवान् का अवतार हमारे जीवन में हो।

गोस्वामीजी ने भगवान् राम के जन्म का वर्णन किया, और जन्म का वर्णन करने के बहाने उन्होंने भगवान् राम का जन्म किन परिस्थितियों में होता है, तथा किस देश में होता है, किस पात्र के घर में होता है, इसका भी उल्लेख किया। इसका तात्पर्य है कि यदि वैसा ही देश, वैसा ही काल और वैसी ही पात्रता हम अपने जीवन में ला सकें तो हमारे यहाँ भी भगवान् का जन्म हो सकता है। क्योंकि वे कोई व्यक्ति तो हैं नहीं कि जो जन्म लें और मर जायँ। भगवान् तो प्रत्येक युग में हैं, प्रत्येक देश में हैं, प्रत्येक काल में हैं। तब यह कैसे माना जा सकता है कि भगवान् का अवतार त्रेतायुग में हुआ था और आज के युग में नहीं हो सकता। गोस्वामीजी जिन परिस्थितियों का वर्णन करते हैं, उन परिस्थितियों के दो स्वरूप हैं – एक है स्थूल और दूसरा है सूक्ष्म। एक बाह्य है और दूसरा अन्तर है। वस्तुतः आज के युग में हमारा कर्तव्य है कि उस अन्तर-अभिप्राय को समझकर हम अपने जीवन में उन परिस्थितियों का निर्माण करें और अपने अन्तःकरण में भगवान् के जन्म की अनुभूति कर, आनंद प्राप्त करें। भगवान् राम के जन्मकाल का चित्रण गोस्वामीजी इन पंक्तियों में करते हैं –

नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावनकाल लोक बिश्रामा।।
सीतल मंद सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर संतन मन चाऊ।।
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्रवहिं सकल सरितामृत धारा।।

सबसे पहले गोस्वामीजी जिस वस्तु का वर्णन करते हैं, वह है नवमी तिथि। इस वर्णन में एक क्रमभंग दिखायी देता है। साधारणतया जैसे संकल्प आदि बोलते हैं, तो संकल्प को लेने से पहले मास, मास के पश्चात् पक्ष और पक्ष के पश्चात् तिथि और तिथि के पश्चात् नक्षत्र का नाम लिया जाता है। किन्तु गोस्वामीजी ने यहाँ पर जिस क्रम से वर्णन किया है, उसमें क्रम उल्टा है। इसमें मास के स्थान पर पहले गोस्वामीजी तिथि का वर्णन कर देते हैं, फिर मास पक्ष और नक्षत्र का वर्णन करते हैं। इसका मुख्य कारण क्या है? थोड़ा इस पर ध्यान दें।
गोस्वामीजी मास के पहले भी जब तिथि का उल्लेख करते हैं, तब इसके पीछे उनका विशेष उद्देश्य है। हम देखते हैं कि भगवान् राम का नाम उनकी जन्मतिथि के साथ ही सम्बद्ध है, मास पक्ष या नक्षत्र के साथ नहीं। यदि चैत्र का नाम राम-मास होता, तब तो गोस्वामीजी उसको प्रथम स्थान देते। गोस्वामीजी उस वस्तु को प्रथम स्थान देते हैं जिसका सम्बन्ध भगवान् राम से है। और वह तिथि के रूप में ही हमारे समक्ष आती है। इसलिये गोस्वामीजी ने रामनवमी की दृष्टि से पहले नवमी तिथि का उल्लेख किया। गोस्वामीजी विनयपत्रिका के एक पद में तिथियों का अनुपमन व्याख्या की है। वे परिवा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियों की व्याख्या करते हैं। गोस्वामीजी मानो संकेत देना चाहते हैं कि ये काल, तिथियाँ तो न जाने कितनी बार आती हैं और चली जाती हैं। लेकिन वस्तुतः यदि प्रत्येक तिथि हमारे जीवन में एक संकल्प लेकर आये, एक प्रेरणा लेकर आये, तब तो हमने काल, तिथि तथा अपने जीवन का सदुपयोग किया और यदि हमारे जीवन में तिथियाँ आ-आकर चली जायँ, तो दोनों ही व्यर्थ हो जाय।
गोस्वामीजी कहते हैं कि माह की प्रथम तिथि परिवा (प्रतिपदा) जब आये तो हम साधना का पहला सोपान, प्रभु प्रम का संकल्प लें- परिवा प्रथम प्रेम बिनु, राम मिलन अति दूर। क्योंकि जब तक जीव के अन्तःकरण में भगवान् श्रीराघवंेन्द्र के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होगा तब तक प्रत्येक देश में, प्रत्येक काल में, प्रत्येक व्यक्ति के निकट रहते हुए भी वे प्राप्त नहीं हो सकते। उसी प्रकार से द्वितीया के दिन हमें द्वैत का परित्याग करना चाहिये, तृतीया के दिन हमें त्रिगुण का परित्याग करना चाहिये, और इस क्रम में उन्होंने नवमी की जो व्याख्या की, वह बड़ी सुन्दर है। गोस्वामीजी ने कहा- भई! भगवान् राम जिस नवमी तिथि में जन्म लेते हैं, वह नवमी तिथि केवल पंचांग की गणना मात्र नहीं है यह जीवन में भी है- नवमी नवद्वार पुर बसि, जेहिं न आप भल कीन। गोस्वामीजी कहते हैं ‘नवमी नवद्वारपुर’, हम लोगों के पास एक पुर है। एक ऐसी नगरी है जो नवद्वारपुर है। गीता में इसका उल्लेख किया गया है- ‘नवद्वारे पुरे देही, नैव कुर्वन्नकारयन्।

गोस्वामीजी कहते हैं कि ये आने-जाने वाली तिथियाँ धन्य कब होंगी? बोले- जिस तिथि में राम आ गये, वह युग-युग के लिये धन्य हो गयी। जब नवमी तिथि में भगवान् का प्राकट्य हो गया तो नवमी की सार्थकता हो गयी। तब तो वह नवमी नहीं रह गयी, वह तो ‘रामनवमी’ हो गयी। यदि हमने अपने जीवन में इस नवद्वार के पुर को प्राप्त करने के पश्चात् भी इस पुरी में प्रभु को आमन्त्रित नहीं किया, इस पुरी में प्रभु को प्रकट नहीं किया, तब इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमने इसका कोई सदुपयोग नहीं किया। गोस्वामी जी ने कहा- नवमी तिथि को यह संकल्प लो कि जो नवद्वारपुरी हमको प्राप्त हुई है, इस नवद्वारपुरी को हम भगवान् की सेवा में प्रयुक्त करेंगे, भगवान् की भक्ति में प्रयुक्त करेंगे।
नवमी तिथि रिक्ता-तिथि है और यह नवद्वार पुर शरीर भी खाली ही है और यह खाली ही रह जायगा तो ‘खालीपन’ ही रह जायेगा तो इसे बढ़कर दुर्भाग्य की बात क्या हो सकती है तो यह चेष्टा करें कि प्रभु हमारे इस रिक्त नवद्वारपुर में आयें कि जिससे हमारा यह दोष प्रभु से जुड़कर, प्रभु के आगमन से भर जाये और हम भी पूर्णता को प्राप्त हों। रिक्तता (खालीपन) अकेले तो एक दोष ही है, अवगुण है पर वही जब ईश्वर से जुड़ जाता है तो सबसे बड़ा गुण भी बन जाता है।

– युग तुलसी श्रीरामकिंकर साहित्य से. . . . .

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