श्री राम: शरणम् मम्

About - रामायणम् आश्रम - श्री धाम अयोध्या

A Holy & Devine Place

Ramayanam Ashram

Ramayanam Ashram is Founded by Padma Bhushan Yug Tulsi Param Pujya Maharaj Shree Ram Kinkar Upadhyay Ji.

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Pratham Katha Sthal of Ram Charit Manas

Hinduism & four Vedas : The Rig Veda, The Samaveda, Yajurveda, Atharvaveda

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Samadhi of Param Pujya Sadgurudev Shree Ram Kinkar Ji Maharaj

In Hinduism There Is Countless Number of Gods, Lord & Temples In The World

रामायणम्

श्रीरामचरित मानस का प्रथम कथा-स्थल


यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं सुकविना श्रीशम्भुना दुर्गमं
श्रीमद्रामपदाब्जभक्तिमनिशं प्राप्तयै तु रामायणम्‌।
मत्वा तद्रघुनाथनामनिरतं स्वान्तस्तमः शान्तये।
भाषाबद्धमिदं चकार तुलसीदासस्तथा मानसम्‌॥

श्री रामायणम् धाम एक दिव्य चैतन्य सिद्ध भूमि है जो ऐतिहासिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

  • स्थानीय “श्रीरामकिंकरेश्वर महादेव” का स्वरूप विलक्षण है। वे स्वयंभू हैं और उनका श्रीविग्रह पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार अत्यंत प्राचीन है। भगवान शिव की पिण्डी में जनेऊ सहज अंकित है और क्रमशः पुष्ट होते जा रहे हैं।
  • इसी भूमि से कुछ वर्ष पूर्व ही पतित पावनी सलिला श्री सरयू जी प्रवाहित होती थीं । माना यही जाता है कि माता जानकी इसी घाट पर स्नान करने के लिये पधारती थीं । इसीलिये इस स्थान का नाम “जानकीघाट” पड़ा । आज भी खनन करने पर 5-6 फुट बालू के बाद जल धरती से निकल आता है। अतः यह आश्रम सरयू में ही स्थित है।
  • गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री राम चरित मानस में यह संकेत किया है–

संबत सोरह सै एकतीसा। करहुँ कथा हरिपद धरि सीसा।।

नौमी भौम बार मधु मासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।

  • भगवान्‌ भूतभावन शिव की कृपा के द्वारा ही इस अद्भुत ग्रन्थ की रचना आज से 400 वर्ष पूर्व की गयी
  • गोस्वामी तुलंसीदास जी ने भगवान्‌ शंकर के समक्ष सरयू तट पर उन्हीं को प्रणाम करते हुए, अपने प्रभु श्रीराम के मंगलमय प्राकट्य दिवस नौमी तिथि पर ही, रामकथा का प्रथम गायन इसी भूमि पर किया है। युग तुलसी परम पूज्य महाराज श्रीरामकिंकर जी को इस भूमि की दिव्यता का संकेत मिल चुका था। इसीलिये उन्होंने “रामायाणम् आश्रम” की स्थापना भी इसी स्थान पर की।
  • युग तुलसी परम पूज्य महाराज श्री ने अनेक वर्षों तक इस भूमि में तपस्या की और फिर सगुण लीला संवरण करके इसी भूमि में समाधि ले ली है।
  • इन दोनों महापुरुषों संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास और युग तुलसी परम पूज्य महाराज श्रीरामकिंकरजी का समन्वयात्मक चिंतन प्रकाश, इस रामायाणम् की सिद्ध भूमि से निकलकर पूरे विश्व को आलोकित करे यही श्री सीतारामजी के चरणों में प्रार्थना है ।
  • रामायणम्‌ में युग तुलसी की सजीव, अत्यन्त सम्मोहक छवि जो कृपामूर्ति के रूप में सबको आह्लादित करती है, कल्पवृक्ष के समान प्रत्येक शरणाश्रित की समस्त कामनाओं की पूर्ति कर रहे हैं। नित्य प्रति श्री अवध के राजाधिराज श्री कनक भवन बिहारी के मंदिर से उनके लिये चंदन प्रसाद आता है। इस मंदिर में अनवरत अनुष्ठान चलते रहते हैं, जो सदैव पूर्ण हुए। परम पूज्य महाराजश्री से निर्देशित, उनके संकल्पानुसार रामायणम्‌ में शैक्षणिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक सारी गतिविधियाँ सेवकों द्वारा सुचारु रूप से संचालित हो रही है।

रामायणम्‌ आश्रम, श्रीधाम अयोध्या

युग तुलसी पद्मभूषण डॉ. श्रीरामकिंकर जी

महाराज की समाधि-स्थली

श्रोरामचरितमानस के प्रणयनकर्ता गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-

नौमी भौम वार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।

रामनवमी की मंगलमयी तिथि को श्री अवध की पावन भूमि में, कविकुल तिलक गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस दिव्य ग्रन्थ को सन्तों के समक्ष लोकार्पित किया था। गोस्वामीजी के द्वारा जिस स्थान पर मानस का वह प्रथम प्रकाश, प्रथम वाचन हुआ था, उसी स्थान पर आज भव्य “श्री रामायणम्‌ धाम” का निर्माण युग तुलसी परम पूज्य महाराज श्री रामकिंकरजी के द्वारा हुआ है। यह भूमि महाराजश्री की तपःस्थली भी रही, यहाँ पर विपुल विलक्षण साहित्य की भी संरचना हुई; जप, तप, ध्यान, पूजा, भजन, अभिषेक, पुण्य कर्म अनवरत चल रहे हैं। परम पूज्य महाराजश्री इसी भूमि में समाधिस्त हो गये। शायद पूरे वातावरण में जो दिव्य चेतना का संचार है, दिव्यता का अहसास है, ऐश्वर्य श्री का जो दर्शन है; विलक्षण शांति का स्पन्दन है, वह सब एक न एक रूप में परम पूज्य महाराजश्री की उपस्थिति का एहसास करा रही है।

महाराज श्री कृपा मूर्ति रूप में

रामायणम्‌ में युग तुलसी की सजीव, अत्यन्त सम्मोहक छवि जो कृपामूर्ति के रूप में सबको आहलादित करती है, कल्पवृक्ष के समान प्रत्येक शरणाश्रित की समस्त कामनाओं की पूर्ति कर रहे हैं। नित्य प्रति श्री अवध के राजाधिराज श्री कनक भवन बिहारी के मंदिर से उनके लिये चंदन प्रसाद आता है। इस मंदिर में अनवरत अनुष्ठान चलते रहते हैं जो सदैव पूर्ण हुए। परम पूज्य महाराजश्री से निर्देशित, उनके संकल्पानुसार रामायणम्‌ में शैक्षणिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक सारी गतिविधियाँ सेवकों द्वारा सुचारु रूप से संचालित हो रही है।

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