जब विभीषण जी भगवान्र राम के शरण में आते हैं तब हनुमानजी प्रभु को उनके गुण को याद दिल्रा देते हैं | वे कहते हैं “सरनागत वच्छल भगवाना”-प्रभो आप तो शरणागतवत्सल हैं | ‘वत्सल’ शब्द का अर्थ आप जानते ही होंगे | गाय का अपने बछड़े के प्रति जो प्रेम है उसे वात्सल्य कहते हैं | बछड़ा चाहे कितना भी गंदा क्यों न रहे, गाय तो बड़े प्रेम से अपनी जीभ से उसे चाट-चाट कर साफ बना देती है । आपने बछड़े को जन्म लेते देखा होगा | वह तब कितना गंदा रहता है, रक्त, मज्जा आदि कितने गंदे पदार्थों से लिपटा रहता है और गाय अपनी जीभ से चाट-चाट कर बछड़े की सारी गंदगी उदरस्थ कर लेती है | किसी ने गाय से कहा- गाय तुम कितनी उदार हो कि तुमने बछड़े की गंदगी से घृणा नहीं की, बल्कि उसे बड़े प्रेम से स्वीकार किया । गाय ने उत्तर दिया कि इसमें मेरी क्या विशेषता है ? बछड़े में जो गंदगी थी, आखिर वह मेरे भीतर से ही तो आई थी, अतः उसे साफ करना भी मेरा ही कर्तव्य है | हनुमानजी का तात्पर्य यह है कि प्रभों अगर भक्त में कोई दोष है, तो वह भी तो आपका ही निर्मित है | अतः यदि किसी से दोष हुआ है, तो इसका निवारण भी आप ही करेंगे ।
युग तुत्नसी पं. श्रीरामकिंकर
श्री हनुमत चरित्र/88