श्रीसीताजी की खोज में जब हनुमानजी आकाशमार्ग से जा रहे थे, तो सिंहिका उनकी विशाल छाया को पकड़ उन्हे नीचे गिराने का चेष्टा करती है । सिंहिका ईर्ष्या है और ईर्ष्या का स्वभाव होता है, कि वह जिसे भी बड़ा देखती है, ऊपर जाते हुये देखती है, उसे गिराने और खाने की चेष्टा करती है | तो, जब हनुमानजी लंका में प्रवेश करने लगे, उन्होने सोचा कि बड़े बनने पर लोगों को ईर्ष्या होती है, तो चलो छोटे बनकर चलें | पर यदि कोई व्यक्ति ऐसा निर्णय कर ले कि बड़े बनने से ईर्ष्या होगी, इसलिए छोटे बन जाएँ, तो क्या इससे बुराई से मुक्ति मिल जाएगी? हनुमानजी जब छोटे बनकर चले, तो लंकिनी मिल गई और उसने कहा कि मैं तुम्हें खाऊँगी | हनुमानजी समझ गए कि लंका में चलना साधारण नहीं | बड़े बनो तो गिराएँगे और छोटे बनो तो खाएँगे | और यही बात समाज में भी होती है | यदि व्यक्ति अपने को अत्यंत क्षुद्र मान ले, तो सब उसे खाने को तैयार हो जाते हैं और यदि वह अपने बड़प्पन का दिखावा करे, तो सब उसे गिराने को तैयार रहते हैं | तो प्रश्न यह है कि फिर बड़ा बनें या छोटा? हनुमानजी बड़े भी बन सकते हैं और छोटे भी, इन दोनों रूपों का सदुपयोग कर सकते हैं | |